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Sunday 22 July 2018

लौट आयोगे

बहुत दर्दनाक होते है वो दिन जो ढलकर  भी नहीं ढलते,जिनके घाव के दाग़ कभी न कभी दिख ही जाते है।
पता नहीं मेरा बोलना कहा तक ठीक है ये, कि अब हम दोनों में मैं की दीवार खड़ी हो चुकी है तुम दूर जा रहे हो धुंधले होते जा रहे और तुम्हारी सोच भी धुंधली हो रही है मेरे प्रति,अब तुम्हारा मेरे साथ रहना बिल्कुल वैसा ही है जैसे आग और पानी का साथ। आग और पानी कभी एक नहीं हो सकते। जब आग तब पानी नहीं और जब पानी तब आग नहीं।
मेरा दिमाग तुमको लेकर कोई ख्वाब नहीं बुनता लेकिन ये दिल बिखरे ख्वाबों को रोज़ अपने आसुओं से सिलता है, और ये सिलते ख्वाब तुमको दिखते नहीं क्यूंकि तुम अपनी बनाई बेफ्रिकी में जिये जा रहे हो, अब तुम अंजान हो गए हो, अजनबी बन गए हो, और मैं हूँ कि ना बेफ्रिकी में ही जी पाती और ना अजनबी ही हो पाती हूँ,
क्या तुम इतने खास हो?
अपने अंदर  दिल के सिले कोने में मोहब्बत की मौत का जश्न मनता है पर सच कहूँ ये जश्न इक क्षण भर के लिए भी सुकून पैदा नहीं करता  बस पैदा करता है तो छटपटाहट।  कई दफ़ा ऐसा हुआ कि मैंने खुद को दुतकारा, तुम पर मन ने तंज कसे पर ये सब कोई असर नहीं कर सकी और मैं मोहब्बत के दलदल में फंसती चली गई।
बहुत आवाज़ें दी पहले मन ने,आत्मा ने, जुब़ान ने पर तुमने सुना सिर्फ़ सुना, तुमने दलदल से निकाला नहीं, कई संदेशों की पोटली भिजवाई इन हवाओं, सूरज, चांद, बारिशों के माध्यम से
बदले में तुमने ख़ामोशी,अहम, दोषों की फेहरिस्त भेज दी
सुन्न खड़ी मैं मोहब्बत में मैली हो जाने के बाद भी, बाट देखती हूँ, कि एक दिन तुम ज़रूर लौट आयोगे!

विभा परमार

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