1.अपनी जिंदगी से ऐसे छिटक देते हो तुम
मानों मैं रात में बिछाई गई चादर की सिलवट हूं
हैना!
2. सब बोलती हूँ बस वो नहीं बोल पाती जो चलता है
मेरे अंतर्मन में
जैसे समय चलता है
जैसे तुम चलते हो मेरे मन में
3.सवाल- जवाब
तर्क- कुतर्क
रूठना- मनाना
ये सब साथी है एक दूसरे के
दोनों में कोई
कम या ज्यादा नहीं
पर यहां!
तुम मैं
और
मैं , मैं क्यूं?
क्या दोनों
मैं से हम
"हम"
नहीं हो सकते!
4.ज्यादा पढ़ा नहीं
बस महसूस किया
कि प्रेम बंदिश में नहीं
विश्वास में ठहरता है
5.बह जाता हूं अक्सर मैं
प्रेम बहाव में इस क़दर कि
इनकी क्षणिकताओं को ही
जीवन समझ बैठता हूँ!
विभा परमार "विधा"
बहुत सुंदर
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