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Tuesday 25 December 2018

वी नो एवरीथिंग

कभी कभी लगता है कि हमें अपने सपनों के हसीं अतीत में जीना चाहिए जहां के किस्सों को हम वास्तविकता में सुना सके जिससे राहत नसीब हो।
पर  इस वास्तविकता भरे जीवन में राहत हो ये ज़रूरी नहीं,ख़ासकर उनसे तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें बख़ूबी मालुम हो कि हां इसका मोह है हमसे,इसलिए भी शायद मेरा जी ऊब जाता है कि हमे चाहते हुए और ना चाहते हुए भी सिमटते रिश्तों के लिए मशक्कत करनी पड़ती है,आख़िर क्यूं हमें ज़रूरत पड़ती है मशक्कत की वो भी उनके लिए जिनसे सिर्फ़ मोह ही है!
क्या मोह इतना ख़राब है?
कि जिनसे मोह है भी थोड़ा बहुत वो भी  अपनी ग़ैर स्थितियों के चलते अपनी गतिविधियों से बताने लगते है कि  उन्हें ये मोह रास नहीं आता,वाकई ज़माना प्रायोगिक हो रहा है,  और लोग प्रायोगिक हो रहे तो बुरा क्या! ऐसा तो बुरा कुछ भी नहीं लेकिन अगर जन्म से प्रायोगिक हो तो बिल्कुल भी बुरा नहीं पर अचानक से हो तो बुरा नहीं बहुत बुरा होता है।
और अगर ऐसा हो ही रहा तो फ़िर ये प्रायोगिकता सिर्फ़ एक के लिए नहीं सबके लिए होनी चाहिए, पर ऐसा भी तो नहीं होता ना!
बहुत साधारण सी बात बोल रहे हैं कि बहुत ज्यादा ख़राब लगता है इस ख़राब के लिए मेरे पास दोष जैसे शब्द नहीं होते,
लेकिन हां मन में बहुत सारे सवाल फटकने लगते है, जिनके जवाब भी एक वक्त बाद गूंगे लगते है, कैसे?
जैसे क्या बोल रही हो, मैं तो ऐसा करता नहीं, भला मैं क्यूं करूंगा ऐसा, मैं ये सोचकर नहीं बोला था, अरे यार क्या बोलूं, और अंत में तुम सही हो!
मेरा मकसद तुम्हारी ग़लतियां बताना नहीं, वो तुम्हें पता ही है यू नो एव्रीथिंग!
पर ऐसे व्यवहार से रिश्ते गढ़ते नहीं सिर्फ़ हाय हैलो तक ही सिमट कर रह जाते है, और कुछ नहीं
हम भी तो चाहते है कि तुम जैसे सबके सामने अच्छे से पेश आते हो, अपनत्व से बात करते हो वैसे हमसे भी  तो कर सकते हो, लेकिन तुम्हें पता हैना कि मोह है 

तो बस!!!!

विभा परमार

Sunday 2 December 2018

प्रेम

मैं तुम्हें बेहद करती हूं
या हद में करती हूं
प्रेम
इसका तो मुझे भी नहीं मालुम
और ना ही मुझे जानना ही उचित लगता है

बस लगता ये है कि
कैसे दो हृदय एक हुए जा रहे है
जो रच रहा है तुम्हें मेरे अंदर
इस रचना में मैं होकर भी
मैं नहीं हो पा रही हूं
बस मैं अवतरित हो रही हूं
क्षण क्षण तुममें!

तुम्हारी निगाहों भर से ही
मैं निखर जाती हूं
तुम्हारी आवाज़ भर से ही
मैं प्रफुल्लित हो जाती हूं
तुम्हारे पास आने भर से ही
मैं शीतल हो जाती हूं

मानों मिल रहे हो ऐसे
जैसे मिलते है
ओस और ओस की बूंद जैसे
सफेद चमक
शांति की चमक
फैला रही है प्रकाश प्रेम का
प्रकाश प्रेम का कर रहा है संतुष्ट
हम लोगों को
मुझे हर पहर
और तुम्हें
कुछ ही पहर!

पर हर पहर
और कुछ पहर में
हम रहते है साथ
ईमानदारी की डोर पकड़कर
ये डोर है थोड़ी शरारती
जो अपनी शरारतों से
कर देती है तंग
इस तंग में शामिल है
कुछ व्यस्तताएं
कुछ वक्त
और कुछ नीरसताएं

विभा परमार