कभी कभी लगता है कि हमें अपने सपनों के हसीं अतीत में जीना चाहिए जहां के किस्सों को हम वास्तविकता में सुना सके जिससे राहत नसीब हो।
पर इस वास्तविकता भरे जीवन में राहत हो ये ज़रूरी नहीं,ख़ासकर उनसे तो बिल्कुल भी नहीं जिन्हें बख़ूबी मालुम हो कि हां इसका मोह है हमसे,इसलिए भी शायद मेरा जी ऊब जाता है कि हमे चाहते हुए और ना चाहते हुए भी सिमटते रिश्तों के लिए मशक्कत करनी पड़ती है,आख़िर क्यूं हमें ज़रूरत पड़ती है मशक्कत की वो भी उनके लिए जिनसे सिर्फ़ मोह ही है!
क्या मोह इतना ख़राब है?
कि जिनसे मोह है भी थोड़ा बहुत वो भी अपनी ग़ैर स्थितियों के चलते अपनी गतिविधियों से बताने लगते है कि उन्हें ये मोह रास नहीं आता,वाकई ज़माना प्रायोगिक हो रहा है, और लोग प्रायोगिक हो रहे तो बुरा क्या! ऐसा तो बुरा कुछ भी नहीं लेकिन अगर जन्म से प्रायोगिक हो तो बिल्कुल भी बुरा नहीं पर अचानक से हो तो बुरा नहीं बहुत बुरा होता है।
और अगर ऐसा हो ही रहा तो फ़िर ये प्रायोगिकता सिर्फ़ एक के लिए नहीं सबके लिए होनी चाहिए, पर ऐसा भी तो नहीं होता ना!
बहुत साधारण सी बात बोल रहे हैं कि बहुत ज्यादा ख़राब लगता है इस ख़राब के लिए मेरे पास दोष जैसे शब्द नहीं होते,
लेकिन हां मन में बहुत सारे सवाल फटकने लगते है, जिनके जवाब भी एक वक्त बाद गूंगे लगते है, कैसे?
जैसे क्या बोल रही हो, मैं तो ऐसा करता नहीं, भला मैं क्यूं करूंगा ऐसा, मैं ये सोचकर नहीं बोला था, अरे यार क्या बोलूं, और अंत में तुम सही हो!
मेरा मकसद तुम्हारी ग़लतियां बताना नहीं, वो तुम्हें पता ही है यू नो एव्रीथिंग!
पर ऐसे व्यवहार से रिश्ते गढ़ते नहीं सिर्फ़ हाय हैलो तक ही सिमट कर रह जाते है, और कुछ नहीं
हम भी तो चाहते है कि तुम जैसे सबके सामने अच्छे से पेश आते हो, अपनत्व से बात करते हो वैसे हमसे भी तो कर सकते हो, लेकिन तुम्हें पता हैना कि मोह है
तो बस!!!!
विभा परमार