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Tuesday 28 September 2021

वाकया

 मुझे याद  नहीं कि आख़िरी बार मेरे सूखे होंठ कब मुस्कुराए थे शायद मैं किसी तृष्णा से सदा भरी रही  जिससे होंठ मुस्कुरा नहीं पाए ,जबकि  मुस्कुराहट की हंसी को मैं भी महसूस करना चाहती थी लेकिन मेरी ये चाहना इक श्राप रही! तुम्हें पता है इन दिनों मैं घर में उगाए गमलों में छोटे-छोटे पौधों के दुखों को सुनती हूं, और वो चिड़िया जिसने अभी -अभी अपना नया  घोंसला बनाया है घर के छज्जे पर उसके गीतों को गुनगुनाती हूं उसके गीतों में उसके पुराने घोंसले और उसके अण्डों के फूटने का दर्द साफ़ झलकता है, उस वक्त मैं समझ नहीं पाती कि आख़िर कैसे उसे उसके खोए बच्चों ,उजड़े घोंसले का सांत्वना दूं, वो चिड़िया अपने विरह गीतों में मेरे सूखे होठों के बारे में पूछती है और मैं उसके पूछने को वहीं छोड़कर अपने कमरे में दौड़ आती हूं,ख़ुद को आईने में देखती हूं और अभिनय करती हूं मुस्कुराने का कि ऐसी कोई तृष्णा ,ऐसी कोई इच्छा ,ऐसा कोई श्राप नहीं जिसने मुझे घेर रखा हो !पर कहीं न कहीं ये सब भी सच ही लगता और कभी कभी ये भी लगने लगता है कि दुख की अदृश्य चादर को ओढ़े रहने से मुझे ये सुख , ये मुस्कुराहटें सब क्षणभंगुर  ही लगते हैं, और ये उदासी मृत्यु तक की यात्रा की साथी!

विभा परमार


Saturday 31 July 2021

लेख

ख़ुद की महत्ता को समझें

सबको जल्दी है ,घर से जाने की जल्दी ,घर पर आने की जल्दी, दूसरों को प्यार करने की जल्दी ,नई नई तकनीक सीखने की जल्दी, और फ़िर उन सबसे  ऊबने की जल्दी, रिश्ते बनाने की जल्दी और जब  समझ ना आए तो उन्हें छोड़ने की जल्दी, हैना इस जल्दी में खुद को पाने की कोई जल्दी नहीं  !
      सोचती हूं कि हम सब ज़िंदगी में वो सबकुछ पाना चाहते हैं जिसकी हम ख़्वाहिश रखते हैं ,जिसके हम ख़्वाब देखते हैं और यकीन मानिए वो पूरे भी होते हैं लेकिन फ़िर भी ,फ़िर भी आंतरिक तौर पर  कहीं कुछ खालीपन सा,कुछ तन्हा सा लगता है। ऐसा अक्सर महसूस होता है ,मैंने कुछ  ऐसे लोगों को देखा है जिन्होंने सबकुछ कमाया धन-दौलत ,प्रेम, अच्छी लाईफस्टाइल, सुरक्षित भविष्य फ़िर भी उनको कुछ समय बाद उदास पाया,आख़िर क्या वजह है उनकी उदासी की  कुछ और ख़्वाहिशें ,कुछ और ख़्वाब जिन्हें वे पूरा नहीं कर पाए वह तो नहीं, बिल्कुल नहीं उनकी उदासी या यूं कहें आज अधिकांशतः सबकी उदासी का मजबूत  कारण है ख़ुद को आंतरिक तौर से निग्लेक्ट करना ,हम ज़िंदगी की रेस में तो दौड़ते चले जा रहें हैं मगर अपने अंदर झांकते तक नहीं, हम चेहरे,बोलने के लहज़े  बॉडी लैंग्वेज ,अपने एक्सेंट पर तो विशेष ध्यान देते हैं मगर आंतरिक मन /आत्मा को तो पूछते तक नहीं और फ़िर जब सबकुछ मिलने के बाद भी शांति नहीं मिलती तो बेचैनी को ही अपने जीवन का सच मान लेते हैं।
      वाकई आजकल की ज़िंदगी में खुद को समय देना बेहद ज़रूरी है बिल्कुल वैसे  ही जैसे हम अपने रिश्तों , अपने सपनों, अपने ऊपरी आवरण पर देते हैं । हमें ज़्यादा कुछ नहीं करना है बस रोज़ सेल्फ टॉक करनी है और जब इस प्रक्रिया को हम अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेंगे तब हमें आंतरिक तौर पर अलग ही प्रसन्नता का अहसास होगा बिल्कुल वैसे जैसे हरियाली को देखकर ,जैसे छोटे बच्चों को देखकर होती है। 
      जब सेल्फ टॉक  या स्वयं से बात करते हैं  तब हम ख़ुद को जानना शुरू करते हैं ,और जानने की इस प्रक्रिया में हमारा आत्मिक विकास होना भी शुरू होता है ,हम अपनेआप से जागरूक होने लगते हैं, अपनी महत्ता को समझने लगते हैं कि इस दुनिया में जितने भी प्राणी हैं उनका एक उद्देश्य है ,एक लक्ष्य है।
      ये एक सतत प्रक्रिया है जिसे दैनिक करना उत्तम ,जिससे हम निरर्थक विचारों ,सबकुछ होने के बाद की  पनपी उदासी नहीं घेरती।

विभा परमार
    
   

तिलिस्म

कोई तिलिस्म है जो मुझे तुममें रहने को विवश करता है, इस विवशता को दुख से मत जोड़ना ,कोई विषाद मत आंकना ,बस कुछ है जो रहने को विवश करता है 
पता है इतनी तो मैंने यात्राएं भी नहीं की  जितनी कि तुम में  अनेक यात्राएं कर ली और इन यात्राओं में मुझमे रोज़ नयी मुस्कुराहट कौंध जाती है, मैं सच में तुम्हें अपने करीब देखना चाहती हूं इतना कि  
     एक ही बिस्तर पर तुम्हारी तरफ़ करवट लेकर तुम्हें निहारते निहारते सोना और सुबह निहारते हुए उठना 
     हां उस बीच  रात के उस पहर में अगर  तुम मुझे चूम लेते हो तो मुझे रत्तीभर भी बुरा नहीं लगेगा बल्कि तुम्हारे करीब होने का  वो तिलिस्म मेरे अंदर और मजबूती से जम जाएगा 
विभा परमार

ख़त


कोरोना में जकड़ने के बाद शरीर में बड़ी अफरातफरी मची हुई है ज़्यादा सोचना, दिमाग में पुरानी स्मृतियों का  निरंतर जीवंत उठना, मुझे विवश कर रहा है बिस्तर  पर इधर उधर करवटें बदलने को , 
नींद तो जाने कई रातों से लापता हो गई है और ये  मन, इसका क्या कहूं  , इसे कुछ भी नहीं भा  रहा, खाने में स्वाद का गायब हो जाना,
सच में वो कहते हैना कि अगले एक पल में क्या हो जाए किसी को भान नहीं,
इन दिनों दिल धड़कने के बजाए डर धड़क रहा है इसके बावजूद भी मैं तुम्हें सोच रही हूं 
     ये लड़की भी ना अलग ही गुल खिलाने में लगी है 
अभी अपनी  इम्यूनिटी पर ध्यान देना चाहिए तो तुम पर ध्यान दे रही है, 
कैसा मोहपाश है ,कैसा आलय है ये 
मेरी आत्मा कई पीड़ाओं से भर गई है ,
बची रह गई तो कोरोना वॉरियर कहलाऊंगी और अगर नहीं तो पता नहीं,अच्छा तुम्हें बताना भूल गई थी कि मुझे जब हल्की नींद आई थी तब उस नींद में का़फ्क़ा आए थे और वो अपने उस ख़त की बात कर रहे थे जो फेलिस को लिखा था  कि 
अगर हम अपनी बाहों का प्रयोग नहीं कर सकते
 तो आओ 
शिकायतों के ज़रिए 
एक दूसरे का आलिंगन करें
ये कहकर उन्होंने लंबी गहरी सांस ली और अदृश्य हो गए ,फ़िर तुम भला नफ़रत कैसे कर सकते हो?
पर हां गुस्सा ज़रूर कर सकते हो जैसे हम कर देते हैं!
और इसमें बुरा भी क्या
 नेह है ,लगाव है जिससे गुस्सा स्वाभाविकता उपजता ही है,सुनो मैं हमेशा तुमसे शिकायतों से आलिंगन करना चाहूंगी!
 इस समय बिल्ली के बच्चे की तरह मेरे भाव मिमिया रहे हैं और मैं ख़ामोशी से बैठकर इनके मिमियाने की ध्वनि को महसूस कर रही हूं
डॉक्टर ने कहा है कि तुम अकेली नहीं हो, इससे हर दूसरा घर लड़ रहा है,तुम बिल्कुल  फिक्रमन्द रहो 
ठीक हो जाओगी  
हो  सकता है ठीक हो जाऊं मगर ये पहर कट नहीं रहे
ऐसे में महादेवी वर्मा याद आ रही हैं कि 
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
(दिल में ही) करीब नहीं 
ये बीमारी ही ऐसी है जितनी दूरी उतनी ही शरीर की सहुलियत 
पर दिल में तो आ सकते हो ना

कहीं ऐसा ना हो कि भाव का निजी उचाट विलाप करने लगे 
और मैं उचट जाऊं सदा सदा के लिए जीवन से
नफ़रत नहीं मगर शिकायत रहेगी कि मेरे समझदार प्रेयस को पता था कि उसकी प्रेयसी को भी महामारी ने जकड़ लिया और उसने उस वक्त प्रेम को छोड़कर नफ़रत को चुना!

विभा परमार


     

प्रेम अनंत

प्रेम अनंत है, तो प्रेम समंदर भी है ,प्रेम चिढ़न है, तो प्रेम पागलपन भी है, इसकी ऊर्जा ऊपर जब उठती हैना 
तब ये दुनिया , लोग , प्रकृति  जानवर सभी ख़ूबसूरत नज़र आते हैं ,और जब इसकी ऊर्जा शून्य पर जाती है तब यही सब लोग भौंडे  बदसूरत से नज़र आते हैं 
कमियों की खान सहित अथाह चिड़चिड़ापन आने लगता है ,सबकुछ व्यर्थ सा लगने लगता है! 
वाकई सभी ऊर्जाओं में प्रेम ऊर्जा सबसे सुंदर ,शांत ,स्नेहिल   महसूस करवाती है ,कितनों की मानसिक पीड़ाए दूर की हैं
कितनों को इस ऊर्जा ने बतलाया है कि दुनिया में तुम भी  ख़ूबसूरत हो , तुम्हारा भी अपना अस्तित्व है,  तुम कमाल हो
प्रेम आपके बेवजह के विचारों को सहला कर सुला देता है ,माथे पर चूमकर तसल्लीभरी नींद दे देता है और कसकर गले लगाकर ये अहसास करवाता है कि तुम अकेली नहीं हो मैं हूं तुम्हारे साथ ,तुम्हारे लिए या यूं कहो कि 
 हम दोनों के लिए, 
 मैं मानती हूं शब्दों की माया को  ,शब्द हमें ढांढस बंधवाते हैं, हमें दुनिया की इस भारी भीड़ में अकेलापन महसूस नहीं करवाते , बिल्कुल वैसे जैसे अपनी प्रिय किताबें ,प्रिय भोजन ,प्रिय लोग 
 बस जीवन यही है बाकी कुछ भी नहीं 
विभा परमार

सम्मोहन

उदासियों को कोई समस्या नहीं होती मेरे पास ठहरने में
मगर प्रेम.....मुआफ़ी तुम्हारा प्रेम 
इसे ज़्यादा ही समस्याओं,मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है तभी देखो ना 
अब कोई आहट नहीं ,
अब कोई गुलाब से ख़्वाब नहीं 
अब तुम भी ख़्वाबों में मिलते नहीं
ये कवियित्री के तौर पर लिखना बेहद आसान है
    मगर प्रेमिका! 
              प्रेमिका नाम लिखते ही आंखें गीली हो जाती हैं
 क्या करूं फ़िर भी एक लंबी गहरी सांस लेकर सबकुछ प्रेमभरा हो जाएगा सोचकर इस वक्त को  
               मैं बिना सोचे समझे काटे जा रही हूं ,बहुत ज़्यादा सोच नहीं रहे
  फ़िर भी  अपनेआप से आंखों से पानी बहने लग जाता है और जब पानी बहता है तब याद आता है 
  कि 
  सुनो तुम्हें सामान्य रहना है ,ऐसा वैसा कुछ भी नहीं है जिसको सोचकर तुम विलाप में डूबती जा रही हो!
     सबकुछ कर रही हूं, सिर में जुएं हो गए गर्मी से या ज़्यादा सोचने से पता नहीं बस  वो साल याद आ जाता है जब मेरा पहला प्रेमी छोड़कर चला गया था 2017! में तब भी सिर में  ऐसे ही जुओं ने पैठ जमा ली थी, उस वक्त भी उमस भरी ही गर्मी थी!
         फ़िर मैं इधर उधर टहलने लग जाती हूं ,लंबी गहरी सांसे लेने लगती हूं और रामजी को याद करती हूं ,कि किसी सज्जन इंसान ने मेरा चेहरा देखकर कहा था कि तुम ज़्यादा ना सोचा करो और जब ज़्यादा सोचो तब राम जी का नाम ले लिया करो कुछ सहने में आसानी रह जाएगी!
      आज के युग में इतनी सुविधाएं हो गई हैं मापने की 
कि  हम लंबे पुल को तो माप सकते हैं मगर सम्मोहन के पुल को नहीं!

विभा परमार

ठंडक

उमसभरी गर्मियों  में हममें भी उमस भर चुकी है, इसकी ख़बर शायद दोनों को ही नहीं, और ख़बर है भी तो  कोई इल्तिजा नहीं, फ़िर भी मन में भरी उमस में तुम्हारा ख़्याल  अचानक मुझमें ठंडक पैदा कर जाता है ,
जिसे मैं एक बार और महसूस करना चाहती हूं ,
मेरी ये एक बार और महसूस करने की चाहनाओं का कोई अन्त नहीं
कहीं कोई चूक, कहीं कोई चुप्पी ,कहीं कोई प्यास खाए जा रही है कुछ दिनों से या यूं कहो तुम्हारे अचानक से ख़ामोश हो जाने से मेरे  अंदर तक चोट की ,बस इस चोट में आहें ,आक्षेप नहीं निकलते ,सिवाए आंखों का 
रिसाव कभी भी शुरु हो जाता है,
 मैं बिल्कुल भी नहीं चाहती कि ऐसा कुछ मेरे अंदर घटे, इससे ये हो रहा है कि मेरी तबियत खराब हो गई ,सच में ऐसी तबियत जब खराब हो तो डॉक्टर भी सोचता है कि  ऐसे में क्या ही दवाएं दी जाए,
बिस्तर में हूं ,डॉक्टर ने कहा है कि पेड़-पौधों को देखो उनके रंगों को देखो कुछ गढ़ो ,तुम तो लिखने वाली लड़की हो ,कुछ प्यारा लिखो जिससे तुम जल्दी ठीक हो जाओ,
भला ये भी उम्र चुपचाप किसी सदमे में रहने की है।
    मैं बस उनके सामने मुस्कुराकर रह गई 
    क्या कहूं उनसे कि मेरे एकांत में भी तुम्हारी ही उपस्थिति है तो सामान्य जीवन में कितनी रही होगी और इसे भला कैसे बतलाया जा सकता है 
      अच्छा सुनो   मुझे दवा खाना बिल्कुल पसंद नहीं अलग अलग भय मेरे चारों तरफ मक्खी की तरह भिनभिनाने लगते हैं .......
      ये दवाएं मुझे जबरदस्ती सुलाने की कोशिश करती हैं इतनी मशक्कत करनी ही क्यूं सारे मसलों पर वक्फ़ा ज़रूरी है  तुम आओ और मुझे  गले लगाकर बतला दो इन्हें 
      कि सच में मुझे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,और मैं इस तसल्ली से सो सकूंगी  कि अब तुम आ गए हो तो
       मैं,
        मेरा सबकुछ ठीक हो गया है!

विभा परमार