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Saturday 31 July 2021

सम्मोहन

उदासियों को कोई समस्या नहीं होती मेरे पास ठहरने में
मगर प्रेम.....मुआफ़ी तुम्हारा प्रेम 
इसे ज़्यादा ही समस्याओं,मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है तभी देखो ना 
अब कोई आहट नहीं ,
अब कोई गुलाब से ख़्वाब नहीं 
अब तुम भी ख़्वाबों में मिलते नहीं
ये कवियित्री के तौर पर लिखना बेहद आसान है
    मगर प्रेमिका! 
              प्रेमिका नाम लिखते ही आंखें गीली हो जाती हैं
 क्या करूं फ़िर भी एक लंबी गहरी सांस लेकर सबकुछ प्रेमभरा हो जाएगा सोचकर इस वक्त को  
               मैं बिना सोचे समझे काटे जा रही हूं ,बहुत ज़्यादा सोच नहीं रहे
  फ़िर भी  अपनेआप से आंखों से पानी बहने लग जाता है और जब पानी बहता है तब याद आता है 
  कि 
  सुनो तुम्हें सामान्य रहना है ,ऐसा वैसा कुछ भी नहीं है जिसको सोचकर तुम विलाप में डूबती जा रही हो!
     सबकुछ कर रही हूं, सिर में जुएं हो गए गर्मी से या ज़्यादा सोचने से पता नहीं बस  वो साल याद आ जाता है जब मेरा पहला प्रेमी छोड़कर चला गया था 2017! में तब भी सिर में  ऐसे ही जुओं ने पैठ जमा ली थी, उस वक्त भी उमस भरी ही गर्मी थी!
         फ़िर मैं इधर उधर टहलने लग जाती हूं ,लंबी गहरी सांसे लेने लगती हूं और रामजी को याद करती हूं ,कि किसी सज्जन इंसान ने मेरा चेहरा देखकर कहा था कि तुम ज़्यादा ना सोचा करो और जब ज़्यादा सोचो तब राम जी का नाम ले लिया करो कुछ सहने में आसानी रह जाएगी!
      आज के युग में इतनी सुविधाएं हो गई हैं मापने की 
कि  हम लंबे पुल को तो माप सकते हैं मगर सम्मोहन के पुल को नहीं!

विभा परमार

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