प्रेम अनंत है, तो प्रेम समंदर भी है ,प्रेम चिढ़न है, तो प्रेम पागलपन भी है, इसकी ऊर्जा ऊपर जब उठती हैना
तब ये दुनिया , लोग , प्रकृति जानवर सभी ख़ूबसूरत नज़र आते हैं ,और जब इसकी ऊर्जा शून्य पर जाती है तब यही सब लोग भौंडे बदसूरत से नज़र आते हैं
कमियों की खान सहित अथाह चिड़चिड़ापन आने लगता है ,सबकुछ व्यर्थ सा लगने लगता है!
वाकई सभी ऊर्जाओं में प्रेम ऊर्जा सबसे सुंदर ,शांत ,स्नेहिल महसूस करवाती है ,कितनों की मानसिक पीड़ाए दूर की हैं
कितनों को इस ऊर्जा ने बतलाया है कि दुनिया में तुम भी ख़ूबसूरत हो , तुम्हारा भी अपना अस्तित्व है, तुम कमाल हो
प्रेम आपके बेवजह के विचारों को सहला कर सुला देता है ,माथे पर चूमकर तसल्लीभरी नींद दे देता है और कसकर गले लगाकर ये अहसास करवाता है कि तुम अकेली नहीं हो मैं हूं तुम्हारे साथ ,तुम्हारे लिए या यूं कहो कि
हम दोनों के लिए,
मैं मानती हूं शब्दों की माया को ,शब्द हमें ढांढस बंधवाते हैं, हमें दुनिया की इस भारी भीड़ में अकेलापन महसूस नहीं करवाते , बिल्कुल वैसे जैसे अपनी प्रिय किताबें ,प्रिय भोजन ,प्रिय लोग
बस जीवन यही है बाकी कुछ भी नहीं
विभा परमार
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