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Saturday 31 July 2021

ठंडक

उमसभरी गर्मियों  में हममें भी उमस भर चुकी है, इसकी ख़बर शायद दोनों को ही नहीं, और ख़बर है भी तो  कोई इल्तिजा नहीं, फ़िर भी मन में भरी उमस में तुम्हारा ख़्याल  अचानक मुझमें ठंडक पैदा कर जाता है ,
जिसे मैं एक बार और महसूस करना चाहती हूं ,
मेरी ये एक बार और महसूस करने की चाहनाओं का कोई अन्त नहीं
कहीं कोई चूक, कहीं कोई चुप्पी ,कहीं कोई प्यास खाए जा रही है कुछ दिनों से या यूं कहो तुम्हारे अचानक से ख़ामोश हो जाने से मेरे  अंदर तक चोट की ,बस इस चोट में आहें ,आक्षेप नहीं निकलते ,सिवाए आंखों का 
रिसाव कभी भी शुरु हो जाता है,
 मैं बिल्कुल भी नहीं चाहती कि ऐसा कुछ मेरे अंदर घटे, इससे ये हो रहा है कि मेरी तबियत खराब हो गई ,सच में ऐसी तबियत जब खराब हो तो डॉक्टर भी सोचता है कि  ऐसे में क्या ही दवाएं दी जाए,
बिस्तर में हूं ,डॉक्टर ने कहा है कि पेड़-पौधों को देखो उनके रंगों को देखो कुछ गढ़ो ,तुम तो लिखने वाली लड़की हो ,कुछ प्यारा लिखो जिससे तुम जल्दी ठीक हो जाओ,
भला ये भी उम्र चुपचाप किसी सदमे में रहने की है।
    मैं बस उनके सामने मुस्कुराकर रह गई 
    क्या कहूं उनसे कि मेरे एकांत में भी तुम्हारी ही उपस्थिति है तो सामान्य जीवन में कितनी रही होगी और इसे भला कैसे बतलाया जा सकता है 
      अच्छा सुनो   मुझे दवा खाना बिल्कुल पसंद नहीं अलग अलग भय मेरे चारों तरफ मक्खी की तरह भिनभिनाने लगते हैं .......
      ये दवाएं मुझे जबरदस्ती सुलाने की कोशिश करती हैं इतनी मशक्कत करनी ही क्यूं सारे मसलों पर वक्फ़ा ज़रूरी है  तुम आओ और मुझे  गले लगाकर बतला दो इन्हें 
      कि सच में मुझे ऐसा कुछ भी नहीं हुआ,और मैं इस तसल्ली से सो सकूंगी  कि अब तुम आ गए हो तो
       मैं,
        मेरा सबकुछ ठीक हो गया है!

विभा परमार

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