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Tuesday 14 July 2020

प्रायश्चित

देखना एक दिन 
  मैं अपने द्वारा बनाई यात्रा पर निकल जाऊंगी 
  जिसमें 
  मेरी व्याकुलताएं 
  मेरे विलाप और कुछ 
  ना कही जाने वाली बातें मौजूद होंगी

अच्छा  मेरी इस यात्रा में तुम शामिल ज़रूर होना 
 तुम्हें एक एक कदम पर 
 मेरी एक एक बात ज़रूर याद आएगी
जिन्हें तुमने सदैव धूल की तरह झाड़ा
 मैं जान तो  रही थी
 मगर समझ नहीं पा रही कि 
मेरी बातें तुम्हारे लिए धूल ही हैं
 मगर मेरे लिए ये मेरा तुम्हारे प्रति स्नेह 
 आख़िर कैसे मैं दिन- दिनभर तुम्हारा इन्तज़ार करती रहती 
 और वहीं तुम अपनी व्यस्तताओं का ब्यौरा लेकर लौटते रहते 

  मैंने ना अक्सर ख़ुद को बेकाबू होते देखा है
 और इस बेकाबूपने को काबू करते भी 
  ख़ुद को ज़्यादा से ज़्यादा व्यस्त रखना 
  ताकि भूल से भी 
  तुमसे जुड़ी कोई बात ,तुम्हारा कोई जानने वाला
 तुम्हारा कोई मैसेज,
 मेरे इर्दगिर्द ना घूमे
 मगर कभी कभी तुम्हारी स्मृतियां मुझे  उसी पुराने रस्ते पर खड़ा कर देती है
 
  मैं लड़ते लड़ते थक गई
  मैं कहते कहते थक गई
  और इस रोज़ की लड़ने और कहने की थकावट ने
 मुझे  ख़ामोश कर दिया!
 
  अब तुम जाओ 
  तुम्हारा जहां मन हो
 तुम सिर्फ़ किसी एक के नहीं 
  तुम हर किसी के बन के जिओ
  यही तुम्हारी सज़ा है
 और मेरा आंतरिक प्रायश्चित!

विभा परमार

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