देखना एक दिन
मैं अपने द्वारा बनाई यात्रा पर निकल जाऊंगी
जिसमें
मेरी व्याकुलताएं
मेरे विलाप और कुछ
ना कही जाने वाली बातें मौजूद होंगी
अच्छा मेरी इस यात्रा में तुम शामिल ज़रूर होना
तुम्हें एक एक कदम पर
मेरी एक एक बात ज़रूर याद आएगी
जिन्हें तुमने सदैव धूल की तरह झाड़ा
मैं जान तो रही थी
मगर समझ नहीं पा रही कि
मेरी बातें तुम्हारे लिए धूल ही हैं
मगर मेरे लिए ये मेरा तुम्हारे प्रति स्नेह
आख़िर कैसे मैं दिन- दिनभर तुम्हारा इन्तज़ार करती रहती
और वहीं तुम अपनी व्यस्तताओं का ब्यौरा लेकर लौटते रहते
मैंने ना अक्सर ख़ुद को बेकाबू होते देखा है
और इस बेकाबूपने को काबू करते भी
ख़ुद को ज़्यादा से ज़्यादा व्यस्त रखना
ताकि भूल से भी
तुमसे जुड़ी कोई बात ,तुम्हारा कोई जानने वाला
तुम्हारा कोई मैसेज,
मेरे इर्दगिर्द ना घूमे
मगर कभी कभी तुम्हारी स्मृतियां मुझे उसी पुराने रस्ते पर खड़ा कर देती है
मैं लड़ते लड़ते थक गई
मैं कहते कहते थक गई
और इस रोज़ की लड़ने और कहने की थकावट ने
मुझे ख़ामोश कर दिया!
अब तुम जाओ
तुम्हारा जहां मन हो
तुम सिर्फ़ किसी एक के नहीं
तुम हर किसी के बन के जिओ
यही तुम्हारी सज़ा है
और मेरा आंतरिक प्रायश्चित!
वाह 👌
ReplyDelete