संवाद
प्रेमिका जो अब पत्नी बन चुकी है उसकी तबियत कुछ खराब है और वो अपने पति को लिखती है कि
इन दिनों मेरी तबियत कुछ नासाज़ रहती है
और मेरे
चुलबुलेपन का उत्साह भी डगमग रहता है
खाने से मन ने मुंह मोड़ रखा है
जिससे
चेहरे पर उदासी की झुर्रियां चमकती हैं
बस लगता है कि
दोनों पहर दवाएं पी रहीं हूं
मैं ना वैसे ही तुम्हारी देखरेख को पीना चाहती हूं
ताकि तुम मेरा
फ़िर से खिलखिलाता चेहरा देख सको
अपलक नज़रों से देखती रहती हूं तुम्हें
बेड के पास बैठकर जाने क्या लिखते रहते हो
और तुम्हें देखते देखते
दवाओं का असर मुझे नींद की दुनिया में ले जाता है
वहां हम साथ हैं
प्रणय की मुंडेर पर बैठकर
चिढ़ाते एक दूसरे को
तुम शांत होकर मुझ वाचाल को निहार रहे हो
सच में
ये नींद की दुनिया बेहद ख़ूबसूरत है
जिसमें हम हक़ीक़त से बहुत दूर हैं
कोई मय और तुम्हारे जाने का डर भी नहीं भटकता
नींद में सोचती हूं कि इतनी फिक्रमंद तो मैं हक़ीक़त में भी नहीं रहती जितनी कि नींद में रहती हूं तुम्हारे साथ!
विभा परमार
No comments:
Post a Comment