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Tuesday 14 July 2020

नींद

संवाद
प्रेमिका जो अब पत्नी बन चुकी है उसकी तबियत  कुछ खराब है और वो अपने पति को लिखती  है कि

इन दिनों मेरी तबियत कुछ नासाज़ रहती है
और मेरे
चुलबुलेपन का उत्साह भी डगमग रहता है
खाने से मन ने  मुंह मोड़ रखा है
जिससे
चेहरे पर उदासी की झुर्रियां चमकती हैं
बस लगता है कि
दोनों पहर दवाएं पी रहीं  हूं
मैं ना वैसे ही तुम्हारी देखरेख को पीना चाहती हूं
ताकि तुम मेरा
फ़िर से खिलखिलाता चेहरा देख सको
  
अपलक नज़रों से देखती रहती हूं तुम्हें
बेड के पास बैठकर जाने क्या लिखते रहते हो
और तुम्हें देखते देखते
दवाओं का असर मुझे नींद की दुनिया में ले जाता है
वहां हम साथ हैं
प्रणय की मुंडेर पर  बैठकर
चिढ़ाते एक दूसरे को
तुम शांत होकर मुझ वाचाल को निहार रहे हो

सच में
ये नींद की दुनिया बेहद ख़ूबसूरत है
जिसमें हम हक़ीक़त से बहुत दूर हैं
कोई मय और तुम्हारे जाने का डर भी नहीं भटकता
नींद में सोचती हूं कि  इतनी फिक्रमंद तो मैं हक़ीक़त में भी नहीं रहती जितनी कि नींद में रहती हूं तुम्हारे साथ!

विभा परमार

  

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