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Saturday 31 July 2021

ख़त


कोरोना में जकड़ने के बाद शरीर में बड़ी अफरातफरी मची हुई है ज़्यादा सोचना, दिमाग में पुरानी स्मृतियों का  निरंतर जीवंत उठना, मुझे विवश कर रहा है बिस्तर  पर इधर उधर करवटें बदलने को , 
नींद तो जाने कई रातों से लापता हो गई है और ये  मन, इसका क्या कहूं  , इसे कुछ भी नहीं भा  रहा, खाने में स्वाद का गायब हो जाना,
सच में वो कहते हैना कि अगले एक पल में क्या हो जाए किसी को भान नहीं,
इन दिनों दिल धड़कने के बजाए डर धड़क रहा है इसके बावजूद भी मैं तुम्हें सोच रही हूं 
     ये लड़की भी ना अलग ही गुल खिलाने में लगी है 
अभी अपनी  इम्यूनिटी पर ध्यान देना चाहिए तो तुम पर ध्यान दे रही है, 
कैसा मोहपाश है ,कैसा आलय है ये 
मेरी आत्मा कई पीड़ाओं से भर गई है ,
बची रह गई तो कोरोना वॉरियर कहलाऊंगी और अगर नहीं तो पता नहीं,अच्छा तुम्हें बताना भूल गई थी कि मुझे जब हल्की नींद आई थी तब उस नींद में का़फ्क़ा आए थे और वो अपने उस ख़त की बात कर रहे थे जो फेलिस को लिखा था  कि 
अगर हम अपनी बाहों का प्रयोग नहीं कर सकते
 तो आओ 
शिकायतों के ज़रिए 
एक दूसरे का आलिंगन करें
ये कहकर उन्होंने लंबी गहरी सांस ली और अदृश्य हो गए ,फ़िर तुम भला नफ़रत कैसे कर सकते हो?
पर हां गुस्सा ज़रूर कर सकते हो जैसे हम कर देते हैं!
और इसमें बुरा भी क्या
 नेह है ,लगाव है जिससे गुस्सा स्वाभाविकता उपजता ही है,सुनो मैं हमेशा तुमसे शिकायतों से आलिंगन करना चाहूंगी!
 इस समय बिल्ली के बच्चे की तरह मेरे भाव मिमिया रहे हैं और मैं ख़ामोशी से बैठकर इनके मिमियाने की ध्वनि को महसूस कर रही हूं
डॉक्टर ने कहा है कि तुम अकेली नहीं हो, इससे हर दूसरा घर लड़ रहा है,तुम बिल्कुल  फिक्रमन्द रहो 
ठीक हो जाओगी  
हो  सकता है ठीक हो जाऊं मगर ये पहर कट नहीं रहे
ऐसे में महादेवी वर्मा याद आ रही हैं कि 
जो तुम आ जाते एक बार
कितनी करूणा कितने संदेश
पथ में बिछ जाते बन पराग
गाता प्राणों का तार तार
अनुराग भरा उन्माद राग

आँसू लेते वे पथ पखार
जो तुम आ जाते एक बार
(दिल में ही) करीब नहीं 
ये बीमारी ही ऐसी है जितनी दूरी उतनी ही शरीर की सहुलियत 
पर दिल में तो आ सकते हो ना

कहीं ऐसा ना हो कि भाव का निजी उचाट विलाप करने लगे 
और मैं उचट जाऊं सदा सदा के लिए जीवन से
नफ़रत नहीं मगर शिकायत रहेगी कि मेरे समझदार प्रेयस को पता था कि उसकी प्रेयसी को भी महामारी ने जकड़ लिया और उसने उस वक्त प्रेम को छोड़कर नफ़रत को चुना!

विभा परमार


     

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