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Saturday 31 July 2021

लेख

ख़ुद की महत्ता को समझें

सबको जल्दी है ,घर से जाने की जल्दी ,घर पर आने की जल्दी, दूसरों को प्यार करने की जल्दी ,नई नई तकनीक सीखने की जल्दी, और फ़िर उन सबसे  ऊबने की जल्दी, रिश्ते बनाने की जल्दी और जब  समझ ना आए तो उन्हें छोड़ने की जल्दी, हैना इस जल्दी में खुद को पाने की कोई जल्दी नहीं  !
      सोचती हूं कि हम सब ज़िंदगी में वो सबकुछ पाना चाहते हैं जिसकी हम ख़्वाहिश रखते हैं ,जिसके हम ख़्वाब देखते हैं और यकीन मानिए वो पूरे भी होते हैं लेकिन फ़िर भी ,फ़िर भी आंतरिक तौर पर  कहीं कुछ खालीपन सा,कुछ तन्हा सा लगता है। ऐसा अक्सर महसूस होता है ,मैंने कुछ  ऐसे लोगों को देखा है जिन्होंने सबकुछ कमाया धन-दौलत ,प्रेम, अच्छी लाईफस्टाइल, सुरक्षित भविष्य फ़िर भी उनको कुछ समय बाद उदास पाया,आख़िर क्या वजह है उनकी उदासी की  कुछ और ख़्वाहिशें ,कुछ और ख़्वाब जिन्हें वे पूरा नहीं कर पाए वह तो नहीं, बिल्कुल नहीं उनकी उदासी या यूं कहें आज अधिकांशतः सबकी उदासी का मजबूत  कारण है ख़ुद को आंतरिक तौर से निग्लेक्ट करना ,हम ज़िंदगी की रेस में तो दौड़ते चले जा रहें हैं मगर अपने अंदर झांकते तक नहीं, हम चेहरे,बोलने के लहज़े  बॉडी लैंग्वेज ,अपने एक्सेंट पर तो विशेष ध्यान देते हैं मगर आंतरिक मन /आत्मा को तो पूछते तक नहीं और फ़िर जब सबकुछ मिलने के बाद भी शांति नहीं मिलती तो बेचैनी को ही अपने जीवन का सच मान लेते हैं।
      वाकई आजकल की ज़िंदगी में खुद को समय देना बेहद ज़रूरी है बिल्कुल वैसे  ही जैसे हम अपने रिश्तों , अपने सपनों, अपने ऊपरी आवरण पर देते हैं । हमें ज़्यादा कुछ नहीं करना है बस रोज़ सेल्फ टॉक करनी है और जब इस प्रक्रिया को हम अपने दैनिक जीवन का हिस्सा बना लेंगे तब हमें आंतरिक तौर पर अलग ही प्रसन्नता का अहसास होगा बिल्कुल वैसे जैसे हरियाली को देखकर ,जैसे छोटे बच्चों को देखकर होती है। 
      जब सेल्फ टॉक  या स्वयं से बात करते हैं  तब हम ख़ुद को जानना शुरू करते हैं ,और जानने की इस प्रक्रिया में हमारा आत्मिक विकास होना भी शुरू होता है ,हम अपनेआप से जागरूक होने लगते हैं, अपनी महत्ता को समझने लगते हैं कि इस दुनिया में जितने भी प्राणी हैं उनका एक उद्देश्य है ,एक लक्ष्य है।
      ये एक सतत प्रक्रिया है जिसे दैनिक करना उत्तम ,जिससे हम निरर्थक विचारों ,सबकुछ होने के बाद की  पनपी उदासी नहीं घेरती।

विभा परमार
    
   

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