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Sunday, 22 July 2018

जाने क्यूं

तुम्हारे हिस्से तुम तो आ गए
मगर
मेरे हिस्से में मैं ना आ सकी
जाने क्यूँ!
सोचती हूँ कि
तुम्हारे प्रेम की धूल ने मुझे तो ढक दिया पर शायद ये तुम्हें ना ढक सकी
तुमने
इसे वक्त रहते झाड़ दिया
अपनी विवशताओं  के चलते
तुम्हारा यूं ही झाड़ना
मुझे खुद से अलग करना ही तो था
ये अलगाव की रेखा
मेरे लिए बिल्कुल वैसी ही है
जैसे शरीर के एक अंग का कट जाना
पर तुम्हारे लिए तो
ये आज़ादी हैना!
विभा परमार

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