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Wednesday 26 October 2016

कुछ गुम सा है

हाल
है बेहाल
बेहताशा
बेचैनी रहती है
आजकल कलम 
जो मेरी सबसे अच्छी सखी है
जाने क्यूँ वो रहती है
मुझसे रूठी रूठी

गोते लगाती हूँ
शब्दों के समुद्र में
मगर शब्द भी है रूठे रूठे
लहरो सी है डायरी
जिसके कोरे पन्नों में ढूँढती फिरती हूँ
छुपे अल्फाज़



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