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Wednesday, 26 October 2016

मैला आंचल

कितनी मैली होती है
ये औरतें
जो जन्म से लेकर मृत्यु तक
अपने आँचल में
परिवार को समेटकर चलती है
शायद खुद की परवाह ना करके
भोर से लेकर रजनी तक
वक्त तो होता है तुम्हारे पास मगर सिर्फ़
अपनों के लिये ,अपने लिए नहीं
इज्ज़त को लिबास समझ कर
हमेशा ओढ़कर चलती है
पुरानी परंपराओं, रीति रिवाज़ को
सखी बनाकर रखती है
ताकि दिल में
कभी कोई टीस या सवाल
ना उठे
मगर फिर भी
तुम्हारे निःस्वार्थ प्रेम को
शक़ की नज़र से देखा जाता है अक्सर
शायद तुम्हारा बेबाकी से बोलना
शर्म को उतारना
चूढ़ी, कंगन,
सिंदूर, मंगलसूत्र से मुक्त करना⁠⁠⁠⁠

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