रिश्ता
ना के बराबर,
मोहब्बत
रंजिशों से
मोहब्बत
शिकायतों से
नफरतों की सलाखें
दोनों के दरमिया
बेदर्द है सख्त
पेड़ सा खड़ा है वो
अल्फाज़ों में ज़हर
जो ये जताते
कुछ नहीं
दोनों के दरमिया
अश्कों की बारिश में
रोज़ भीगना
सिर्फ़ यही इश्क है
मेरे लिए
फिर भी कहता
कोई हक़ नहीं
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