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Tuesday 18 October 2016

प्रेम ढाई आखर का नहीं


प्रेम
लहर है
हवा है
गर्मी में ठंडक
सर्दी की गर्माहट है...
प्रेम
रौद्र है
सृंगार है
ममता है
उम्मीदों का घोंसला है...
प्रेम
समर्पण है
साजिश़ है
अपनापन है
कभी इन्तज़ार है...
प्रेम
बेबसी है
आँसू है
मुस्कान है
तन्हाई है
प्रेम
रिश्तों की मिठास है
कड़वाहट भी है
चेहरे का नूर
कभी कंलकित भी  है...
प्रेम
बेचैनी है
अकेलापन है
कभी
उपहास है तो कभी
उपन्यास है
प्रेम
शब्द है
अर्थ है
कभी
अनर्थ है
कभी असमर्थ है
प्रेम
स्वतंत्र है
कभी बंदिश है
कभी बंधन है...




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