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Saturday 24 October 2015

नि:शब्द भावनायें....


माँ-पापा बच्चों की वह छाया होते है जो जीवनभर हमारे साथ रहते है | सर्दी-गर्मी, बारिश या बसंत तो आते जाते रहते हैं, पर माँ-पापा की छाया हमेशा  एक जैसे ही बनी रहती है। ये बड़े ही अजीज और करीब होते हैं ।  इनके गुस्से में भी प्यार छुपा होता है । 

 ये उस वृक्ष की तरह होते है, जो अपना  जीवन हवा, छाया और फल देने में खपा देता है | ठीक उसी तरह ये लोग भी, सिर्फ़ हम बच्चों की ख्वाहिशों, और जरूरतों  को पूरा करने पर ही खुद को न्यौछावर कर दिया। पल भर के लिये भी खुद को वक्त नहीं दे पाते, क्यूँकि कभी इन्होंने हमें खुद से अलग समझा ही नहीं ।  इनका खुशनुमा पल भी वही है, जब बच्चे इनके पास होते है |  ये हमारे लिये रो भी सकते है, और हमारे लिये उतना खुश भी हो सकते है । हमारी परेशानियों मे रात भर जाग भी सकते है । 

भगवान की सभी रचनायें तो सभी सुन्दर हैं, पर उनमें से माँ-बाप बहुत ही सुन्दर  है, जिनकी छत्रछाया में हम बड़े हुये । फिर अचानक से ऐसा क्या हो गया कि उनके लिए वृद्धाश्रम बनाना पड़ गया | उनसे ऐसी कौन सी गलती हो गई, जिसके कारण उन्हें अकेलेपन की सजा सुनानी पड़ |

 आखिर हम क्यूँ भूल गये कि, ये दोनों वही हैं जिन्होंने हमें पाल पोस कर बड़ा किया ताकि हम आत्मनिर्भर बन सकें, पर हम आत्मनिर्भर बनते ही सहारा बनने के बजाय उन्हें ही आत्म निर्भर बनने के लिए वृद्धाश्रम भेज दिया ।  माँ पापा के लिये बच्चे हमेशा छोटे ही रहते है तभी शायद हम अब तक बचपनें वाली गलतियाँ ही करते है और ये लोग खामोश होकर माफ कर देते है । 

 समझ नहीं आता कि माफी का ठेका क्या इन दोनों का ही है ! अरे बुढ़ापा तो सब पर ही आता है तभी तो बच्चे और बूढ़े को समान माना गया है ।  तभी तो बचपन की जिद और गुस्से को माफ कर दिया जाता था | लेकिन अब  इनके बुढ़ापे वाली गलती माफी लायक नहीं है, गलती की सजा वृद्धाश्रम  ही रहे । 

आज की न्यूजेनरेशन ज्यादा सुविधा जनक हो गई है जो खुद भी सुविधा में और माँ पापा को सुविधा में रखने की सोचती है । काश ! ऐसी सोच इन लोगों की होती कि हम बच्चों को पैदा करते ही बोर्डिंग में डाल देते है इससे हम और बच्चे सुविधा में रहेंगे, पर ऐसा ये लोग सोच नहीं पाते । 

इनको तो अब भी अपने बच्चों को बाहर पढ़ाने में यही लगता है कि मेरे बच्चा वहाँ अच्छा खाना नहीं खा पायेगा, अपने जिगर के टुकड़े को खुद से दूर कैसे भेज दूँ, और एक हम समझदार बच्चे है जिन्हें इन्हें भेजने में देर नहीं लगती बल्कि सोचकर मुस्कुराते है चलो एक काम और खत्म हुआ... !!!
विभा परमार

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