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Thursday, 29 December 2016

कच्ची धूप सा

1.
बहुत 
ढूँढने की
कोशिश करती हूँ 
अपने अंदर की टीस को
जड़ से खत्म करने की
मगर ये
कभी 
कच्ची धूप सी
बिखरी आंधियों सी
सूखी निराशाओं में
तब्दील होकर 
हमेशा मेरे अंदर मौजूद रहती है


2.

बैठा था यूँ ही मैं
तुम्हारी यादों की छाँव में
इश्क की छाँव में
जिसमें तुम थी मौजूद 
मेरे लिखे हर हर्फ़ में
हर सेहरे में 
अचानक पारे सा एक आँसू
हथेली पर आकर सिमटकर बोला
क्या इश्क का दूसरा नाम ही
आँसू होता है







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