Search This Blog

Tuesday 3 January 2017

सूखे पत्ते और बारिश की बूँदें

1 . 
मैं शंकित नहीं होना चाहती
और ना ही बनना चाहती हूँ 
 उपहास का पात्र 
 तुम्हें बनाना भी नहीं चाहती
नहीं मालुम तुम्हारे लिए क्या  मतलब  है इश्क का
मगर  मेरे लिए
ये आत्मा
समर्पण
विचारों और
भावनाओं का गहरा संगम है
जो पानी की तरह बहता है
जिसमें बातों का टकराव होता है
विश्वास का नहीं

2.  

बिखरी सूखी पत्तियों सी ठहरी मैं 
कहीं तुम वो हरियाले वसंत तो नहीं
कड़कती बिजली सी बिफरी मैं 
कहीं तुम वो बरसते बादल तो नहीं
है अजनबी भी, है अंजान भी हम 
कहीं तुम्हारी प्यार भरी बातें कोई भ्रम जाल तो नहीं
नाउम्मीदी का खाली कमरा है मेरे अंदर
जिसमें सिर्फ़ अश्कों के मोती चमकते है
कहीं तुम वो उम्मीद की रोशनी तो नहीं
कुछ अधूरे लफ्ज़ है कुछ अधूरी बातें
कहीं तुम मेरे लिए वो पूरी बात तो नहीं
गुम हूं अपनी उलझन भरी जिंदगी में 
कहीं तुम वो सुलझन बनकर मौजूद तो नहीं,

No comments:

Post a Comment