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Friday, 16 December 2016

मिज़ाज़ ए विचार

बड़ी ही निष्ठुर हूँ मैं
जाने कैसे विचारों पर 

अंधविश्वास करती हूँ
आज के दौर की मोहब्बत
काफी बदली हुई है
और समझदार भी
महसूस होता है अक्सर कि
आज की मोहब्बत
नागफनी सी कटीली है जिसमें
रहकर मानों
संवेदनाएं जलकर राख हो चुकी हो
कभी गुज़रे वक्त में जो बंदिशें
देखभाल जताती रही
आज वे ही शायद बेड़िया बन चुकी है
आपस में कांटों सी खीझ 
निरंतर सबके मनों पर राज़ करती है
आखिर ऐसा क्या हुआ
जिसकी गहरी चुभन
दिन पे दिन विरोध और प्रतिशोध का
रूप रखती जा रही है




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