हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पर दम निकले,बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले...
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Saturday 24 December 2016
टीस
बहुत ढूँढने की कोशिश करती हूँ अपने अंदर की टीस जड़ से खत्म करने की मगर ये कभी कच्ची धूप सी बिखरी आंधियों सी सूखी निराशाओं में तब्दील होकर हमेशा मेरे अंदर मौजूद रहती है
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