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Monday, 12 December 2016

काश ! वक्त कुछ ऐसा होता

















काश ! 
वक्त कुछ ऐसा होता
थोड़ा रंग बिरंगा होता


जो चहकता
प्रेम के गीत गुनगुनाता
जिसमें तुम वास्तविक होते
भंवरे से तुम
मोहब्बत का रसपान करते

काश !
तुम मेरे काल्पनिक
किरदार ना होते
और ना ही
निराशाओं की परछाई होते
जो सिर्फ़ डराती है

अक्सर
तुम ख्वाबों में आकर
मेरे सामने पीठ घुमाकर
खड़े रहते हो
कुछ ना बोलकर सिर्फ़
खामोशी को ओड़कर रखते हो

काश !
तुम हकीकत होते
मेरी हकीकत
तुम कोई
ख्वाब नहीं
ख्याल नहीं
ना होते
मगर तुम तो सिर्फ़
मेरी कल्पना निकले

जो बेहद हसीं है
बेहद करीब है
मगर है सिर्फ़
एक ख्वाब
हसीं ख्वाब

काश !
वक्त कुछ ऐसा होता
वक्त थोड़ा रंग बिरंगा होता

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