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Tuesday, 27 September 2016

इन्तज़ार

एक महीना
साल
अरसा, 
तक 
किया है 
सिर्फ़ 
तेरा इन्तज़ार...
सुबह हुई, 
शाम हुई
हर पहर 
हर पल 
किया है
तेरा इन्तज़ार
कभी 
पत्थर सी मूरत बनी,
कभी 
मोम सी पिघली
पर शायद कभी  
खत्म ना होने वाला
किया है
तेरा इन्तज़ार,
अधूरी बातें 
सुनती है 
ये खामोश निगाहें,
शायद 
गहरे राज़ 
छुपा रखे है 
ज़ेहन में अपने,
समेट लिये  है  
सारे ग़म अपने,
जो कभी 
पुराने पन्नों पर 
नज़र आ जाते है
जो कभी मुस्कुराते 
कभी शिकायत करते
बिखेर दी  
खुशियों की खुशबू
इस क़दर 
कि इन्तज़ार 
महसूस होता है
सिर्फ़ तेरे या मेरे अन्दर

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