'मैं' और 'मय'
दोनों की नज़दीकियों ने
साज़िशें रची,
जिसमें कई रिश्तें
टूटे, बिखरें और
ग़लतफहमियों के शिकार हुये
ना जाने कबसे कितनों से
बिन बोले कितने ही केस दर्ज़ हुए,
कहने की फुर्सत नहीं
सुनने का मलाल नहीं
किस्सों में बिकने लगे है ये रिश्ते
कद्र कहीं गुम हो गई शायद
किसी को है कोई ख़बर नहीं,
खोदते है लोग हररोज़ यहां
दम तोड़ते रिश्तों की नई कब्र यहां
कभी सोचा खुद से आओ शुरुआत करें
फिर से मय ने फुसफुसाया
बुझदिल हो शायद तुम जैसे
खुद का कोई ख्याल नहीं,
आज अहम से जुड़कर सीखा है मैंने
रिश्तों का ये सूखापन कैसा,
जिसमें रहता कोई और नहीं,
सिवा 'मैं' और 'मय' रिश्ता ऐसा...
दोनों की नज़दीकियों ने
साज़िशें रची,
जिसमें कई रिश्तें
टूटे, बिखरें और
ग़लतफहमियों के शिकार हुये
ना जाने कबसे कितनों से
बिन बोले कितने ही केस दर्ज़ हुए,
कहने की फुर्सत नहीं
सुनने का मलाल नहीं
किस्सों में बिकने लगे है ये रिश्ते
कद्र कहीं गुम हो गई शायद
किसी को है कोई ख़बर नहीं,
खोदते है लोग हररोज़ यहां
दम तोड़ते रिश्तों की नई कब्र यहां
कभी सोचा खुद से आओ शुरुआत करें
फिर से मय ने फुसफुसाया
बुझदिल हो शायद तुम जैसे
खुद का कोई ख्याल नहीं,
आज अहम से जुड़कर सीखा है मैंने
रिश्तों का ये सूखापन कैसा,
जिसमें रहता कोई और नहीं,
सिवा 'मैं' और 'मय' रिश्ता ऐसा...
Wah bahut sunder
ReplyDelete'मैं और मेरा अहं''
ReplyDelete'तुम' पर तो
बहुत सी पंक्तियां लिखी हैं मैने
लेकिन आज नहीं...!
आज तो बस मैं हूं
और 'मैं' ही लिखूंगा
क्योंकि 'मैं' तो
बस 'मैं' ही था
निरीह, मासूम, निश्छल, निष्कपट
लेकिन तुम्हारा अहं
मुझमे तलाशता रहा
छल, कपट, फरेब, बेइमानी
इनबाक्स ही नहीं
मेरा मनबाक्स भी भरा पडा है
तुम्हारी इन भावनाओं से
सच में...!
आज तो बस
मैं ही लिखूंगा
सुनने की फुर्सत कहां है..?
और
कहने का मलाल भी नहीं..!
समय की नदी के उस पार
हाथ मलते रहे तुम भी,
और
इस पार मै भी..!
बेशक
तुम इसे मेरा मैं (अहं) कह लो
लेकिन
सदियों से होता आया है यह
कि हम तलाशते हैं
बस उसे
जो कहीं होता ही नहीं..!
बस ऐक फरेब होता है..!
तुम पर तो
बहुत सी पंक्तियां लिखी हैं मैने
लेकिन आज नहीं ...!