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Sunday, 10 July 2016

बारिश

बारिश !!!
तुम कितनी चंचल,

नटखट हो
कभी इठलाती 

कभी मुस्कुराती,
बरसती
कभी,
कभी सिर्फ़ बूँदों से 
ठंडक पहुँचाती !
ये तुम्हारी 

आंख मिचोली का खेल ना
सबको भयभीत 

और भ्रम में डाल देता है
अपने सखे बादल को 

शामिल कर,
तुम खूब खेल खेलती हो,
हल्की हल्की बूँदें देख

मन में लालसा उत्पन्न हुई
तुम्हें जानने की

आखिर तुम इतनी चंचल क्यूँ
या अपने अन्दर समेटे कई राज़ को 

अपनी चंचलता से 
छुपाती फिरती तुम
तुम्हारी चंचलता 

प्रश्नों की छड़ी प्रतीत होती
मानों इंसानों जैसी आग 

तुम्हारे बरसते मन में प्रज्वलित होती है,
तभी तुम अपनी दबे की आग से

 सबको भिगो देती हो,
बादल का गरज़ना, बिजली कड़कना
मानों ये तुम्हारे अंदर के ग़म से

बखूबी परिचित हो,
तुम्हारी चंचलता के पीछे 

तुम्हारे ग़म की गहराई का
पता चलता है,
तभी तुम जब बरसती हो ना

तब सिर्फ़ बरसती ही हो,
एक आवेश नज़र आता है,
एक क्रोध,
एक मलाल,
जिसे तुम सिर्फ़ 

बरसकर जताती हो!!