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Thursday, 1 December 2016

प्रेम

ये कोई बंधन नहीं

और ना ही

कोई बोझ 

प्रेम तो सिर्फ़ प्रेम होता है

चाहे तुम इस पर
कितने ही शोध क्यूँ ना कर लो

इसके शोर में

इसकी खामोशी में

इसकी बौखलाहट में

भी ये खुद छुपा होता है

चाहे तुम इसको कितने ही नाम 

क्यूँ ना दे दो

चाहे कितनी ही कहानियाँ गढ़ दो

चाहे तुम इसका उपहास बना दो

मगर ये खुद आहत ना होकर

दूसरों को प्रभावित करता है

तुम सुनो मेरी बात

प्रेम में कोई खास लगाव नहीं

पर प्रेम से जरूर लगाव है

इसका कोई स्वार्थ नहीं

कोई खासा कारण नहीं

ये तो करुणा दया 

छलकाता है 

जैसे 

कोई मां ममता लुटाती हो

अक्सर सुनता आया हूँ

प्रेम किसी वजह से होता है

मगर मेरा दिल नहीं मानता

हमेशा इसकी ख़िलाफत करता है

और कहता है

प्रेम सिर्फ़ प्रेम होता है

इसे करने के लिए 
किसी वजह की जरूरत नहीं