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Sunday, 27 May 2018

दो लोग

दो लोग
एक घर!

जो दो लोग हैना
उन्हें विपरीत स्थितियों ने
जल्दी ही बूढ़ा बना दिया
वे कुछ कहते नहीं
बस मूकदर्शक बनकर
अपने भाग्य को खगालते है
मन ही मन अपने
पाप और पुण्यों का हिसाब करते है!

घर
अब मात्र
मकान बनकर रह गया
जिसमें किलकारियां
पायल की छनछन नहीं बजती
बजता है अब
सन्नाटों का रुदन
झींगुरों की सायं सायं!
विभा परमार

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