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Sunday 27 May 2018

इश्क शहद

तुम बस बर्फ़ से पिघलकर मुझमें 
यूंही बहते रहना
और मैं यूंही
अस्त व्यस्त सी तुमको देखकर
खुद में सुलझती रहूंगीं
इश्क का रंग हम दोनों की  जिंदगी पर चढ़े ऐसा
कि कभी उतरने की आहट तक ना हो
हम लड़े भी ऐसे
मानों
दोनों में इश्क का ही इज़हार हो!
ना छोड़ो तुम मुझे और ना छोड़ू मैं तुम्हें
किसी भी हाल में
हम लोग हर हाल में  एक दूसरे को
इश्क का शहद पिलाते  रहेंगे
तुमको पाकर मैंने अब खुद को पा लिया
क्या ये कम है?
तुम्हें देखना मानों खुद को देखना भर होगा
अब जिंदगी भर
बस तुम यूंही
मेरा साथ निभाते रहना
हम हर वो गली से गुज़रेंगे
जहां इश्क के उत्सव मनाएं जाते होगें
जहां सबके लिए इश्क ही ख़ुदा होता होगा
जहां ना धर्म का बोलवाला
और ना ही दोगली बंदिशें होगी
हम मिलकर हमेशा
बंज़र दिलों पर इश्क का लेप लगाते रहेंगें!

विभा परमार

2 comments:

  1. शायद इश्क़ यूंही शहद होता तो जीवन आसान होता ।

    Beautifully written ��

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