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Thursday 6 April 2017

उम्र भर का फलसफा

हां
तुम मेरी आदत में शुमार
तुम्हीं सुबह और तुम्हीं शाम हो
फिर
तुमसे हिचकिचाहट कैसी
और कुछ भी बोलने में शर्म कैसी
मैं बादल की संज्ञा देकर
तुम्हें खुद से दूर नहीं करना चाहती
और ना ही
खुद धरा बनकर दूर रहना चाहती
ना ही तुम मेरी किताब का कोई हसीं पन्ना हो जो पलट जाए
तुम मेरे जीवन का संपूर्ण अध्याय हो
और ये अध्याय तो ज़िंदगी भर
चलता रहता है
इसकी उम्र तो सिर्फ़ मौत पर ही
खत्म़ होती है

15 comments:

  1. आदरणीय विभा बहन
    यशोदा के नमन
    उपरोक्त रचना मन को छू गई
    चुरा लेने को जी चाहता है...
    एक जिज्ञासा है...
    क्या ये रचना भी आपकी लिखी है
    मुझे लिटरेचर पाईन्ट से मिली है...
    ....
    जीने की एक वजह काफी है
    -विभा परमार
    तलाशने की
    कोशिश करती हूँ
    जीवन से बढ़ती

    उदासीनता की वजहें
    रोकना चाहती हूं
    अपने भीतर पनप रही
    आत्मघाती प्रवृत्ति को
    पर नजर आते हैं
    कृपया बताएँ...
    इसे मैं मेरी धरोहर में प्रकाशित कर रही हूँ
    सादर..

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद मैम आपका। माफी चाहेंगे लम्बे समय के बाद ब्लाग ओपन किया।

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    2. जी हां हमारी ही कविता है खुद से ही लिखी-लिटरेचर प्वांइट ने एडिटिंग की थी

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 19 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. सुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।

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  4. बहुत खुब
    काश दर्द दिल के कम हो जाते
    ये ख्वाहिश अगर खत्म हो जाती

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  5. बहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति.....
    तुम मेरे जीवन का सम्पूर्ण अध्याय हो....
    वाह!!!
    बहुत सुन्दर...।लाजवाब.....
    मै http://eknayisochblog.blogspot.In

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  6. प्रेमाशक्ति में समाहित ख़्वाहिशों की अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ मन को छूने वाला है। शुभकामनाऐं !बधाई!

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  7. प्रेमाशक्ति में समाहित ख़्वाहिशों की अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ मन को छूने वाला है। शुभकामनाऐं !बधाई!

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  8. सुन्दर । ब्लॉग फॉलौवर बटन उपलब्ध करायें ।

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