हां
तुम मेरी आदत में शुमार
तुम्हीं सुबह और तुम्हीं शाम हो
फिर
तुमसे हिचकिचाहट कैसी
और कुछ भी बोलने में शर्म कैसी
मैं बादल की संज्ञा देकर
तुम्हें खुद से दूर नहीं करना चाहती
और ना ही
खुद धरा बनकर दूर रहना चाहती
ना ही तुम मेरी किताब का कोई हसीं पन्ना हो जो पलट जाए
तुम मेरे जीवन का संपूर्ण अध्याय हो
और ये अध्याय तो ज़िंदगी भर
चलता रहता है
इसकी उम्र तो सिर्फ़ मौत पर ही
खत्म़ होती है
आदरणीय विभा बहन
ReplyDeleteयशोदा के नमन
उपरोक्त रचना मन को छू गई
चुरा लेने को जी चाहता है...
एक जिज्ञासा है...
क्या ये रचना भी आपकी लिखी है
मुझे लिटरेचर पाईन्ट से मिली है...
....
जीने की एक वजह काफी है
-विभा परमार
तलाशने की
कोशिश करती हूँ
जीवन से बढ़ती
उदासीनता की वजहें
रोकना चाहती हूं
अपने भीतर पनप रही
आत्मघाती प्रवृत्ति को
पर नजर आते हैं
कृपया बताएँ...
इसे मैं मेरी धरोहर में प्रकाशित कर रही हूँ
सादर..
बहुत बहुत धन्यवाद मैम आपका। माफी चाहेंगे लम्बे समय के बाद ब्लाग ओपन किया।
Deleteजी हां हमारी ही कविता है खुद से ही लिखी-लिटरेचर प्वांइट ने एडिटिंग की थी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 19 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति ,आभार।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत खुब
ReplyDeleteकाश दर्द दिल के कम हो जाते
ये ख्वाहिश अगर खत्म हो जाती
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर प्रेमाभिव्यक्ति.....
ReplyDeleteतुम मेरे जीवन का सम्पूर्ण अध्याय हो....
वाह!!!
बहुत सुन्दर...।लाजवाब.....
मै http://eknayisochblog.blogspot.In
बहुत बहुत धन्यवाद
Deleteप्रेमाशक्ति में समाहित ख़्वाहिशों की अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ मन को छूने वाला है। शुभकामनाऐं !बधाई!
ReplyDeleteप्रेमाशक्ति में समाहित ख़्वाहिशों की अभिव्यक्ति का यह अंदाज़ मन को छूने वाला है। शुभकामनाऐं !बधाई!
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteसुन्दर । ब्लॉग फॉलौवर बटन उपलब्ध करायें ।
ReplyDeleteधन्यवाद
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