मैं प्रेम में
पहले भी ज्वार थी
और अब भी ज्वार ही रही
और तुम,
तुम प्रेम में धारा!
धारा बन तुम अपनी गति में बहते रहते हो
धारा यानि कि तुम
किसी और से नहीं
बस अपनी दशा से प्रभावित हो
लेकिन ज्वार
इसका स्वभाव ही
बेपरवाह सा है
जिसमें प्रतीक्षा ज्यादा है
जिसमें स्नेह ज्यादा है
जिसमें उबाल ज्यादा है
धारा में प्रेम है भी और नहीं भी
धारा में मैं हूं भी और नहीं भी
धारा में तुम हो भी और नहीं भी
मगर ये धारा तुम हो ये ज्ञात है तुम्हें
और मैं ज्वार हूं ये मुझे ज्ञात है
विभा परमार
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