कभी शब्द तो कभी लहज़ा बनती हूँ
कभी होठों की मुस्कान
कभी होठों की मुस्कान
कभी आँखों का इन्तज़ार बनती हूँ
कभी मौसम तो कभी पतझड़,
कभी मौसम तो कभी पतझड़,
कभी सर्दी तो कभी गर्मी बनती हूँ
उम्मीदों सी भरी महफ़िलों में
नाउम्मीद सी रहती हूँ..
ना शिकवा, ना शिकायत है किसी से
ना शिकवा, ना शिकायत है किसी से
बस खुद में ही खुद को ढूँढती रहती हूँ
ज़िंदगी है गहरी राज़ भी होते उससे गहरे
ज़िंदगी है गहरी राज़ भी होते उससे गहरे
यहाँ पर हर शख्स का होता अपना अंदाज़
उनको सुनकर अपनेआप से सवाल करती हूँ..
अपनी ही ज़िंदगी के हर एक पन्ने पर
अपनी ही ज़िंदगी के हर एक पन्ने पर
ग़मों की सियाही चलाती हूँ..
भावनायें भी है संवेदनायें भी है
भावनायें भी है संवेदनायें भी है
जो कभी ठहरती, कभी बहती है
इनको महसूस करके नज़र अंदाज करती हूँ..
मुकम्मल हो ज़ाहिद तेरी हर ख्व़ाहिश
मुकम्मल हो ज़ाहिद तेरी हर ख्व़ाहिश
खुदा से बस यही दुआ करती हूँ
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